Gunjan Kamal

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बिल्ली और दूध की रखवाली ‌

अपने एकलौते बेटे के मृत शरीर को अपनी गोद में लिए राजीव को रोते - बिलखते हुए देख कर उसके दोस्त आनंद  की ऑंखों में रह-रहकर वही दृश्य  घूमने लगा  जब वह इसी तरह अपनी माॅं के मृत शरीर को पकड़कर रो रहा था।


अपने बेटे के बारे में बात करते हुए राजीव ने जब यह कहा कि " इस अस्पताल में लाने से पहले उनका बच्चा बोल रहा था और अचानक से इस अस्पताल में आने के बाद सिर्फ एक सुई देने के बाद ही वह बेहोश हो गया और कोमा में चला गया।"


राजीव की बात सुनकर आनंद को  चार साल पहले अपनी माॅं पर बीता वह दिन याद आ गया, जब  बुखार नही उतरने की स्थिति में डॉक्टर ने उसके सामने ही एक सुई लगाई थी और उसके बाद ही उससे कुछ देर पहले तक बात करती हुई उसकी माॅं उस वक्त के बाद से  उससे कभी भी बात नहीं कर पाई। कुछ घंटों बाद डॉक्टर से पूछने पर पता चला कि वह कोमा में चली गई है। आनंद इस सोच से निकल ही नहीं पाया था कि एक सुई लगाने भर से उसकी माॅं कोमा में कैसे चली गई? उससे पहले ही अगले दिन जब वह अस्पताल पहुंचा तब उसने देखा कि डॉक्टर ने उसकी माॅं को मृत घोषित कर दिया था।


माॅं की मौत के गम ने उसे पागल करार दे दिया, जब लोग यह कहने लगे कि माॅं की मौत के सदमे ने इसे भगवान डॉक्टर पर ही  सवाल खड़ा करने के लिए मजबूर कर दिया। उस अस्पताल में वह अकेला ही था जिसने उस डॉक्टर को अपनी माॅं  की मौत का जिम्मेदार बताया था।


सभी के समझाने के बावजूद भी आनंद आज तक इस बात को मान नहीं पाया था कि वह गलत हो सकता है। आज जब उसका दोस्त राजीव भी डॉक्टर पर सवाल उठा रहा था तो उसके मन में पनप रहे सवालों को ज़ुबान मिल गई। अब वह भी जोर- जोर से अस्पताल में ही  राजीव के साथ मिलकर उस डॉक्टर की काबिलियत पर सवाल उठा रहा था।


"प्लीज चुप हो जाइए! यह अस्पताल है कोई  ऐसी जगह नहीं जहां इतना शोर -गुल करने की आप को इजाजत हो। आप लोग इस बात का भी ध्यान रखें कि यहां पर और भी मरीजों का इलाज चल रहा है? यदि आपको हमसे कुछ शिकायत भी है तो हम इसे शांति से बैठ कर भी सुलझा सकते हैं बिना किसी को, किसी भी तरह की तकलीफ दिए बगैर।" पीछे से आई एक मधुर आवाज ने राजीव को अपने पीछे मुड़ने के लिए मजबूर कर दिया।


आनंद ने देखा तो पाया कि एक चालीस - पैंतालीस साल की औरत जिसके चेहरे से ही लग रहा था कि वह पढ़ी-लिखी है और उसकी बातों ने यह जता दिया था कि वह सभ्य के साथ - साथ समझदार भी है।


आनंद उस सभ्य औरत की बात को मान भी लेता लेकिन राजीव जो अभी भी अपने बेटे गोद में लिए उसके साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठा रहा था, उसकी हालत देखकर आनंद ने कहा "हम भी चाहते हैं कि हमें इंसाफ मिले लेकिन कहीं आप लोग हमें कमजोर न समझ ले इसीलिए हम अपनी आवाज को बुलंद रखने की कोशिश कर रहे हैं।"


"आप को इंसाफ मिलेगा। मैंने मालूम कर लिया है कि क्या हुआ है? इस अस्पताल की मुख्य ट्रस्टी होने के नाते मैं इसकी जांच आज से ही शुरू करवा दूंगी और आप लोग मुझ पर यकीन करें कि जो भी इस मामले में दोषी पाया गया उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, सिर्फ उस वक्त तक  आप लोगों को मेरा साथ देना होगा।"


"बिल्ली और दूध की रखवाली! सुना आप लोगों ने, इन्होंने जो अभी- अभी  कहा, वह कुछ और नही बल्कि इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है।" चारों तरफ घूम- घूमकर कहकहा लगाते हुए आनंद ने कहा।


"आप कहना क्या चाहते हैं मैं समझ नहीं पा रही हूॅं? अपनी तरफ से मैं आपकी मदद करने की पूरी कोशिश कर रही हूॅं फिर भी आप ना जाने क्या बोले जा रहे है?"


उस  सभ्य महिला द्वारा कहे गए शब्दों के जवाब में आनंद ने उसके पास आकर हाथ जोड़कर कहा "पहली नजर में आपको देखा तो लगा कि आप पढ़ी - लिखी है, आपकी बातें सुनकर यह भी एहसास हुआ कि आप हमारी मदद करना चाहती है लेकिन जब आप ' बिल्ली और दूध की रखवाली' इस लोकोक्ति का अर्थ जानते हुए भी अनजान बनने का नाटक करते देख रहा हूॅं तो ऐसा लग रहा है कि आप भी हमें सिर्फ गुमराह करने की कोशिश कर रही है। रही बात इस लोकोक्ति के अर्थ की तो मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के मुॅंह से ही यदि आप  इसका अर्थ सुनना चाहती है तो सुनिए!


' बिल्ली और दूध की रखवाली ' का अर्थ है भक्षक कभी भी  रक्षक नहीं हो सकता और आप जैसे समझदार और पढ़ी - लिखी  महिला इस बात का तो अर्थ जानती ही होंगी कि मैं आपके लिए इन लोकोक्ति का इस्तेमाल क्यों कर रहा हूॅं?"


"मैं आपके द्वारा कहे शब्दों और आपके अनकहे उस दर्द को‌ भी समझने का प्रयास करना चाहती हूॅं जिसके लिए कहीं ना कहीं हमारा मेडिकल सिस्टम जिम्मेदार है। मैं आपकी सभी बातों की जांच का आश्वासन देती हूॅं लेकिन आप भी यहां पर भीड़ इकट्ठी ना हो इस बात का ख्याल रखे क्योंकि ऐसा कर आप दूसरे मरीजों को तकलीफ में ला सकते है।"  सभ्य महिला ने आनंद की तरफ देखते हुए हाथ जोड़कर  कहा।


कुछ देर बाद सबकुछ सामान्य और खामोश तो हो गया लेकिन हाॅल में राजीव की सिसकारियां उस खामोशी को चीरती हुई उस दर्द की दास्तां बयां कर रही थी जो  ताउम्र उसकी तकदीर बन चुकी थी।


सिसकियों के बीच में एक और शोर उभरकर वहां जाकर रूका जहां पर राजीव अपने बेटे के मृत शरीर को लेकर बैठा हुआ था। वह उभरता शोर उसी सभ्य महिला के सैंडिल से आ रहा था जो उसने पहना हुआ था।


" भले ही आप दोनों को ये लगे कि मैं बिल्ली हूॅं और उस दूध की रखवाली करना चाहती हूॅं जो दूध हमारे एकदम से नजदीक है जिसे हम जब चाहे तब पी सकते हैं फिर भी मैं आपकी सोच से कहती हूॅं कि मुझे सिर्फ एक मौका दिया जाएं, परिणाम जो भी मैं पीछे नही हटूंगी। आप पर बीत रहे इस दर्द को इस अस्पताल की कोई ट्रस्टी नहीं बल्कि  एक माॅं आपसे बांटने के लिए आपके पास आई है और हाथ जोड़कर विनती कर रही है उसे सिर्फ एक मौका दिया जाएं।"   हाथ जोड़कर सभ्य महिला ने कहा।


एक महीने के भीतर ही राजीव के साथ - साथ आनंद  भी सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ चुका था। राजीव के बेटे का इलाज जो डाॅक्टर कर रहा था उसकी लापरवाही अब खुलकर सामने आ चुकी थी हालांकि इसके लिए उसने उस सभ्य महिला के साथ-साथ  राजीव और आनंद पर भी हर प्रकार का दबाव डालकर देख लिया था लेकिन उसकी एक ना चली थी। चली तो‌ उस डाॅक्टर की भी नही थी जिसके कारण आनंद ने अपनी माॅं को हमेशा के लिए खो दिया था। साढ़े चार साल बाद ही लेकिन आनंद को भी इंसाफ मिलने की पहली दस्तक सुनाई पड़ चुकी थी और ये सब उसी सभ्य महिला के कारण हो पाया था जिसे आनंद और राजीव दोनों ने ही भक्षक तक कह दिया था।


" मेरे द्वारा कही राजीव और आनंद की आपबीती पर यदि यकीन ना हो तो कभी उनसे पूछ लेना, वो दोनों इसी गाॅंव से है। मैंने उनकी आपबीती तुम्हें इसलिए बताई क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी के  बहुत से युवा 'बिल्ली और दूध की रखवाली' लोकोक्ति को अभी भी सच मानकर चल रहे हैं। अब जमाना बदल रहा है, लोगों की बदलती सोच ने पुरानी कई लोकोक्तियों और मुहावरे के अर्थ को बदलकर नया अर्थ स्थापित किया है और यही नया अर्थ हमारे जीवन में आने वाली समस्याओं को भी नई दिशा प्रदान कर रहा है, समझे घोंचू महाराज!" सुंदर लाल ने अपने बेटे रतन की तरफ मुस्कुराते हुए कहा।


"मैं घोंचू नही हूॅं बापू। अब मैं बड़ा हो गया हूॅं और सब बातें समझने भी लगा हूॅं।" रतन ने अपने पिता से कहा।

" अच्छा समझ गया मैं कि तू घोंचू..... घोंचू ... ।"

" बापू! आगे भी तो बोलिए।"

रतन के चेहरे की तरफ देखते हुए उसके पिता सुंदर लाल ने थोड़ी देर रूकने के बाद हॅंसते हुए  कहा " हां! मेरा बेटा घोंचू... घोंचू  ही तो है।

अपने नाराज बेटे को सुंदर लाल अब मना रहा था लेकिन उससे पहले उसने अपने बेटे को बदलते ज़माने की बदलती सोच से रूबरू करा दिया था।


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                                                  धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗 💞 💗


# मुहावरों की दुनिया 


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5 Comments

Sant kumar sarthi

21-Jan-2023 03:32 PM

शानदार

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Pranali shrivastava

18-Jan-2023 04:52 PM

Nice 👍🏼

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Mohammed urooj khan

18-Jan-2023 04:19 PM

शानदार

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